🕋 मुहर्रम 2025 – इस्लामिक नववर्ष और शहादत का महीना (हिंदी में पूरी जानकारी)
🔷 भूमिका
मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, जिसे इस्लाम धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह महीना सिर्फ इस्लामी नववर्ष की शुरुआत नहीं है, बल्कि यह बलिदान, त्याग, सच्चाई और इंसानियत के लिए शहीद हुए लोगों की याद में मनाया जाता है। खासकर 10वीं तारीख, जिसे ‘आशूरा’ कहा जाता है, बहुत ही भावनात्मक और ऐतिहासिक महत्व रखती है। मुहर्रम 2025
इस लेख में हम जानेंगे:
मुहर्रम 2025 में कब है?
मुहर्रम का इतिहास क्या है?
आशूरा क्यों मनाया जाता है?
हजरत इमाम हुसैन की शहादत का कारण
मुहर्रम के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
मुहर्रम का आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश
भारत और दुनिया में मुहर्रम की परंपराएं
- मुहर्रम 2025
🔶 मुहर्रम 2025 में कब है?
इस्लामी कैलेंडर चांद पर आधारित होता है, इसलिए हर साल मुहर्रम की तारीखें ग्रेगोरियन कैलेंडर से थोड़ी बदलती रहती हैं।
मुहर्रम 2025 आरंभ होगा:
➡️ शाम 27 जून 2025 से
➡️ पहली तारीख (1 मुहर्रम): 28 जून 2025 (शनिवार)
आशूरा (10 मुहर्रम) कब है?
➡️ 7 जुलाई 2025 (सोमवार)

🔶 मुहर्रम का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व मुहर्रम 2025
मुहर्रम इस्लामी वर्ष का पहला महीना होता है। इसे ‘हराम महीनों’ में से एक माना जाता है, यानी जिन महीनों में युद्ध करना मना होता है।
यह महीना हमें याद दिलाता है:
इस्लामी नववर्ष की शुरुआत
करबला की घटना, जिसमें हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने अन्याय के विरुद्ध लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी।
अन्याय, अत्याचार और जुल्म के खिलाफ खड़े होने का प्रतीक।
- मुहर्रम 2025
🔶 करबला की ऐतिहासिक घटना
👑 पृष्ठभूमि मुहर्रम 2025
इस्लाम के पैगंबर हज़रत मोहम्मद (PBUH) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन (R.A.) एक सच्चे, न्यायप्रिय और ईमानदार व्यक्ति थे। यज़ीद नाम का शासक, जो खुद को खलीफा घोषित करना चाहता था, ज़ुल्म और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुका था। उसने इमाम हुसैन से अपने खलीफा बनने की बैअत (समर्थन) माँगी।
⚔️ इंकार और संघर्ष
इमाम हुसैन ने ज़ुल्म और असत्य का समर्थन करने से इंकार कर दिया। उन्होंने अपने परिवार और कुछ साथियों के साथ मक्का से कूफा की ओर यात्रा शुरू की। रास्ते में उन्हें करबला (आज का इराक) में रोक लिया गया।
🏴 करबला का युद्ध
करबला में इमाम हुसैन और उनके साथियों को यज़ीद की सेना ने घेर लिया।
10 मुहर्रम को पानी बंद कर दिया गया।
इमाम हुसैन के छोटे बेटे अली असगर से लेकर उनके भाई अब्बास, सभी शहीद हो गए।
अंततः इमाम हुसैन भी शहीद हो गए।
- मुहर्रम 2025
यह बलिदान सत्य, न्याय और धर्म की रक्षा के लिए दिया गया सबसे बड़ा उदाहरण बन गया।
🔶 आशूरा का महत्व (10 मुहर्रम)
🌙 आशूरा का अर्थ
“आशूरा” अरबी शब्द “आशरा” से बना है, जिसका मतलब है “दसवां दिन”।
✝ यह दिन किसलिए प्रसिद्ध है?
इमाम हुसैन की शहादत की याद
इस्लामी इतिहास के कई बड़े घटनाओं का दिन, जैसे:
हज़रत मूसा (Moses) की फिरऔन से मुक्ति
नूह (Noah) की नाव का ठहराव
🔔 मुहर्रम 2025 इस दिन क्या करते हैं?
शोक मनाया जाता है
ताजिए निकाले जाते हैं
मातम किया जाता है (विशेषकर शिया समुदाय)
रोज़ा रखा जाता है (सुन्नी समुदाय में)
करबला की घटना को याद किया जाता है
🔶 मुहर्रम की परंपराएं – भारत में
भारत में मुहर्रम का पर्व बड़े भावपूर्ण तरीके से मनाया जाता है। यह एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि शोक का पर्व होता है। प्रमुख गतिविधियां होती हैं:
🏴 ताजिया निकालना
लकड़ी या मिट्टी से बने ताजिए, जो इमाम हुसैन की मजार का प्रतीक होते हैं, को सजा कर जुलूस में निकाला जाता है।
अंतिम दिन इन ताजियों को नदी या दरिया में विसर्जित किया जाता है।
🔥 मातम
शिया समुदाय विशेष रूप से जंजीर और हाथ से मातम करते हैं।
वे खुद को पीटकर करबला की पीड़ा का एहसास करते हैं।
📜 मर्सिया और नौहा
करबला की घटना को गीतों, कविताओं और प्रवचनों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
इसे मर्सिया या नौहा कहते हैं।
🍲 नि:शुल्क खाना (सबील)
सड़कों पर पानी, शरबत, चाय, खिचड़ी, बिरयानी आदि की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
यह सेवा की भावना का प्रतीक है।
🔶 मुहर्रम में रोज़ा
मुहर्रम के पहले दस दिनों में रोज़े रखने की परंपरा है। पैगंबर मोहम्मद (PBUH) ने कहा:
“जो व्यक्ति 9 और 10 मुहर्रम को रोज़ा रखे, उसके पिछले वर्ष के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।”
सुन्नी समुदाय विशेष रूप से 9 और 10 या 10 और 11 को रोज़ा रखते हैं।

🔶 मुहर्रम में क्या करें, क्या न करें?
✅ क्या करें?
करबला के शहीदों को याद करें
उनके बलिदान से सीख लें
दूसरों की मदद करें
संयम और सेवा का पालन करें
रोज़ा रखें (स्वास्थ्य अनुसार)
❌ क्या न करें?
खुशियां या उत्सव न मनाएं (यह शोक का महीना है)
तेज़ संगीत या नाच-गाना से परहेज करें
अंधविश्वास न फैलाएं
झगड़े-फसाद से बचें
🔶 मुहर्रम का सामाजिक संदेश
हजरत इमाम हुसैन का बलिदान सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि मानवता और सत्य की विजय का प्रतीक है।
यह सिखाता है कि ज़ुल्म के आगे झुकना नहीं चाहिए।
सच्चाई के रास्ते पर चलना कठिन हो सकता है, पर वह अंततः विजयी होता है।
हमें अपने जीवन में न्याय, नैतिकता और ईमानदारी को अपनाना चाहिए।
🔶 शिया और सुन्नी मतभेद
हालाँकि दोनों समुदाय मुहर्रम की अहमियत को मानते हैं, परंतु पालन के तरीके में कुछ अंतर होते हैं:
विषय | शिया समुदाय | सुन्नी समुदाय |
---|---|---|
आशूरा | मातम, ताजिया, शोक | रोज़ा, दुआ, संयम |
करबला | गहरा भावनात्मक संबंध | ऐतिहासिक स्मरण |
परंपरा | नौहा, मर्सिया, जंजीर का मातम | रोज़ा, इबादत |
🔶 करबला से सीखें – आज के संदर्भ में
आज के दौर में जहां अन्याय, भ्रष्टाचार, लालच और असत्य का बोलबाला है, वहीं करबला हमें प्रेरणा देता है:
बिना डरे सत्य के पक्ष में खड़े हों
अत्याचार का विरोध करें
इंसानियत को सर्वोपरि रखें
सेवा, समर्पण और त्याग के मूल्यों को अपनाएं

🔶 निष्कर्ष
मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है, यह एक शहादत और सच्चाई की जंग की याद है। हजरत इमाम हुसैन का बलिदान हमें यह सिखाता है कि जिंदगी का मकसद सिर्फ जीना नहीं, बल्कि ईमानदारी से जीना है, भले ही उसके लिए कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
मुहर्रम 2025 में हम सभी को चाहिए कि हम करबला से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में सच्चाई, न्याय और इंसानियत को अपनाएं।
🌿 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या मुहर्रम में त्योहार जैसा कुछ मनाया जाता है?
👉 नहीं, मुहर्रम शोक और बलिदान का महीना है, न कि त्योहार।
Q2. क्या मुसलमान मुहर्रम में शादियाँ करते हैं?
👉 अधिकतर मुसलमान इस महीने में शादियों से परहेज करते हैं।
Q3. क्या गैर-मुस्लिम भी मुहर्रम के जुलूस में भाग ले सकते हैं?
👉 हां, भारत में कई स्थानों पर सभी धर्मों के लोग श्रद्धा से भाग लेते हैं।